चार दिनों यह कठिन व्रत 31 को प्रातः
सूर्य देव को अर्घ्य देकर होगा पूर्ण
आजमगढ़। कार्तिक
मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर नहाय-खाय के साथ छठ महापर्व का आरंभ
हो जाता है और अगले चार दिनों तक इसकी धूम रहती है। इस व्रत को संतान
प्राप्ति और उनकी लंबी उम्र की कामना के लिए किया जाता है। छठ पर्व के
दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और
चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसके साथ चौथे दिन के अर्घ्य
के साथ व्रत का पारण किया जाता है। इस व्रत में भगवान सूर्य और छठी मैया की
पूजा की जाती है और स्त्री और पुरुष दोनों ही इस व्रत कर सकते हैं।
नहाये खाये से शुरू होगा महापर्व
ज्योतिषाचार्य
पण्डित नितिश मिश्रा के अनुसार आरोग्य के देवता सूर्य की पूजा का
प्रसिद्ध पर्व सूर्य षष्ठी 28 अक्टूबर, शुक्रवार को नहाये खाये से शुरू
होगा। चार दिनों तक चलने वाला यह कठिन व्रत 31 अक्टूबर, सोमवार को प्रातः
सूर्य देव को अर्घ्य देकर पूर्ण किया जायेगा। 28 अक्टूबर 2022 को नहाय खाय,
29 अक्टूबर 2022 को खरना, 30 अक्टूबर 2022 को डूबते सूर्य को अर्घ्य और 31
अक्टूबर 2022 को उगते सूर्य को अर्घ्य।
इसलिए मनाते हैं छठ महा पर्व
ज्योतिषीय
गणना के अनुसार चंद्र और पृथ्वी के भ्रमण तलों की सम रेखा के दोनों छोरों
पर से होती हुई सूर्य की किरणें विशेष प्रभाव धारण करके अमावस्या के छठे
दिन पृथ्वी पर आती हैं। इसीलिए छठ को सूर्य की बहन कहा गया है। शास्त्रों
में इन्हें सृष्टि के मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने का वर्णन
है। छठ को उषा देवी की संज्ञा प्राप्त है। इनकी ही कृपा से श्री कृष्ण जी
के पुत्र साम्ब कुष्ठ रोग से मुक्त हुये थे।
सूर्य पूजा का विशेष महत्व
ऋग्वेद में भी सूर्य पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। इस वर्ष प्रकृति, जल, वायु और सूर्य के पूजन का यह पर्व इस प्रकार होगा -
28 अक्टूबर शुक्रवार (कार्तिक शुक्ल चतुर्थी) के नहाये खाये।
29 अक्टूबर शनिवार ( पंचमी) खरना (दिनभर निर्जला व्रत रहकर रात में मीठा भोजन करते हैं।)
30 अक्टूबर रविवार (षष्ठी) सायंकालीन अर्घ्य। शाम 5 बजकर 37 मिनट में सूर्यास्त का समय।
31 अक्टूबर सोमवार (सप्तमी) सूर्योदय कालीन अर्घ्य। सुबह 6 बजकर 31 मिनट पर सूर्योदय है।ऐसे रखते हैं छठ का व्रत
36 घंटे का यह व्रत अपने आप में अनूठा है। इस के विधि विधान अपनी अलग विशेषता रखते हैं। जैसे...
1- प्रथम दिवस में मात्र एक बार लौकी और चावल का भोजन करते हैं।
2- व्रत की अवधि में भूमि पर सोते हैं।
3- खरना को पूरे दिन व्रत रहने के बाद रात्रि को चन्द्रमा के दर्शन करने के बाद मात्र रसियाव ग्रहण करते हैं।
4- तीसरे दिन प्रातः से लेकर पूरी रात बिना अन्न जल के रहते है।
5- देशी घी में घर का बना ठेकुआ और कसार ही चढ़ाया जाता है।