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ई-रिक्शा चालकों की मनमानी, क्षमता से अधिक बैठा रहे सवारी, हादसे का बढ़ा खतरा

 ई-रिक्शा चालकों की मनमानी, क्षमता से अधिक बैठा रहे सवारी, हादसे का बढ़ा खतरा रानी की सराय। सुगम यातायात में बाधक बन रहे ई-रिक्शा, यात्रियों की सुरक्षा के लिए खतरा बनने लगे हैं। क्षमता से अधिक सवारी बैठा तेज रफ्तार से चल रहे हैं। आए दिन ई-रिक्शा के पलटने पर यात्रियों के घायल होने की घटनाएं हो रही हैं। लेकिन पुलिस और यातायात विभाग पर इन पर कार्रवाई को लेकर उदासीन बना है।   शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों में ई-रिक्शा का संचालन होता है। नियमों को धता बताते हुए अधिकांश ई-रिक्शा क्षमता से अधिक यात्रियों को ढो रहे हैं।  रानी की सराय में यातायात नियमों की खुलेआम अवहेलना की जा रही है। कस्बा में  एक ई-रिक्शा चालक ने सीमा से अधिक सवारियां बैठाई। जिसमें लगभग 11 सवारियां अंदर बैठी हैं।   ई-रिक्शा चालकों द्वारा नियमों की अवहेलना से सड़क दुर्घटनाओं का जोखिम बढ़ रहा है। ई-रिक्शा चालक क्षमता से अधिक सवारियां और सामान ले जा रहे हैं। स्थानीय निवासियों ने बताया कि चालक रिक्शा की छत पर भी यात्रियों को बैठा रहे हैं। यह कार्य न केवल कानून के विरुद्ध है, बल्कि यात्रियों की जान को भ...

सिख विरोधी दंगे का एक आरोपी गोरखपुर से गिरफ्तार, एसआईटी की आजमगढ़ में छापेमारी

आजमगढ़। सिख विरोधी दंगे में विशेष जांच दल एसआईटी ने शनिवार देर रात गोरखपुर में छापेमारी कर एक आरोपी को गिरफ्तार किया। वहीं अन्य आरोपियों की तलाश में एसआईटी ने आजमगढ़ में भी छापेमारी की, लेकिन यहां टीम के हाथ खाली रहे। अब तक एसआईटी 37 से अधिक आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी है। कुछ आरोपी अब भी फरार है जिनकी तलाश जारी है।

 बता दें कि गोरखपुर जिले के मामखोर गांव निवासी मार्कंडेय शुक्ला, प्रेमू शुक्ला और राम अवध शुक्ला सगे भाई हैं। वर्ष 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद गोरखपुर शहर में भी दंगा भड़का था। जिसमें तीनों भाई भी शामिल थे। एसआईटी की जांच में इनका नाम प्रकाश में आया था। मार्कंडेय शुक्ला की पिछले दिनों कोविड संक्रमण के कारण मौत हो गई थी, जबकि राम अवध शुक्ला की अभी चार दिन पहले ही कैंसर से मौत हुई है। एसआईटी सूत्रों के मुताबिक प्रेमू शुक्ला एल एंड टी कंपनी से सुपरवाइजर पद से सेवानिवृत्त होने के बाद घर पर ही रहते है। शनिवार की रात छापेमारी कर एसआईटी ने प्रेमू शुक्ला को मामखोर उनके आवास से गिरफ्तार किया। गिरफ्तारी के बाद टीम उन्हें स्थानीय थाने ले गई थी। जहां से एक अन्य आरोपी की गिरफ्तारी के लिए टीम आजमगढ़ पहुंची। वहां भी टीम ने तीन संभावित स्थानों पर दबिश दी, लेकिन सफलता नहीं मिल सकी। गौरतलब है कि 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद शहर में हुए सिख विरोधी दंगे की जांच एसआईटी ने तीन साल पहले शुरू की थी। जांच पूरी होने के बाद दंगे के 127 मृतकों के परिवारों को इंसाफ मिलने की उम्मीद जागी है। जांच में 14 मुकदमों में गवाह मिल गए हैं और नौ मुकदमों में चार्जशीट लगाई जानी है। एसआईटी को चिह्नित 94 आरोपियों में 74 जिंदा मिले हैं जबकि 20 की मौत हो चुकी है। एसआईटी बचे हुए आरोपियों की तलाश में जुटी है लेकिन आजमगढ़ में असफलता उसके हाथ लगी है।